हजारीबाग में दंगो का पुराना इतिहास रहा है .मैंने पहली बार इसकी तपीस जानी जब मैं एक स्कुल में रखे पाक कुरान शरीफ को किसी तरह जल जाने से उन्माद भड़का था और उस खबर को मैं कवर करने गया था .किसी को ये मतलब नहीं था की आखिर ये जली कैसे या फिर जो लोग इससे आहत हैं उन्हें समझाया कैसे जाये .घंटे भर में लगा की सहर जल जायेगा .जितनी मुह उतनी बाते मैं जिस जगह से रिपोर्ट कर लौटा वहा के बारे में लोग मुझसे ज्यादा बता रहे थे .जात का रिपओर्टर हूँ सबकी बात सुनननी पड़ती है .हालाँकि मन में आ रहा था की की भद्दी सी गली (क............ना ) दूँ और कहू जब कुछ पता नहीं हो तो आग क्यों लगते हो .ऐसा ही दिनभर होता रहा लेकिन भला हो मेरे चैनेल वालो का जिन्होंने माज़रा समझा और इसपर कोई रिपोर्ट या टिकर नहीं चलाई हालाँकि अखबार वालो ने मिर्च लगाने में कोई कसर नहीं बाकि राखी थी राजनीति की बात करे तो बरकट्ठा में चुनाव बाकि था सो पूरा जोर था की कुछ फरिया लिया जाये कमोबेस सभी चाहते थे लेकिन इन (हरा........दो )की एक न चली लोग समझदार थे और बहके नहीं .मुझे तीन दिन भले ही इन्हें (भगवन और खुदा के रखवाले)गरियाने में बिता लेकिन इनके बहकावे में कोई नहीं आया सो मैं बड़ा खुश था ,अब जब भी मैं मंदिर या मस्जिद के सामने गुजरता हूँ और सर झुकता हूँ तो इश्वर के इस कृत से सर और उंचा उठ जाता है .आशा करता हूँ इश्वर कुछ लोगो के फायदे के लिए इतने सारे लोगो को नहीं बहकने देगा .......
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