अच्छा लगेगा मुझे बताकर प्यारा लगे शायद आप को जानकार ...



Aug 17, 2010

मौत की सेज

भारतीय फिल्म कि बात करें या भारतीय साहित्य कि यहाँ नारी को कई बार भयानक बदला लेने वाली चरित्र के रूप में चित्रित किया गया है ,शाहित्य कि दुरूह रचना या फ़िल्मी फंतासी से दूर हजारीबाग में एक ऐसी नारी है जो द्वेष और बदले कि आग में ऐसे जल रही है जिसकी आंच ने कई दिलफेंक को मौत के दरवाजे पर ला दिया आज भी अपने नये शिकार कि तलाश ये बड़े आराम से कर रही है ,२२ साल कि इस लड़की ने कभी अपने दिल में अरमान सजाए थे ,सपनो और कल्पनाओ के  हिंडोलों में खूब झूमी नाची थी लेकिन २ साल पहले जब इसके सपने टूटे तो इसने अपने गुनाहगारो को सबक सिखाने कि सोची और फिर फैला दिया एड्स का ज़हर ,तीन साल पहले जब इसकी सादी हुई तो लड़के ने इसे बताया नही कि वह एह आई वी पोजिटिव है शासुराल में आर्मानो के साथ आई इस लड़की को जबतक जानकारी हुई तबतक देर हो चुकी थी ,पति तो मर गया इसे दे गया ऐसी बीमारी जो लाइलाज थी ,जिंदगी से समझौता कर चुकी इस लड़की से इसके रूप यौवन ने मुह नहीं मोड़ा था कई मनचले इसके आगे पीछे भी मंडराने लगे और फिर सुरु हुआ रूप के जाल में फस कर एड्स बांटने का खेल जो अब तक जारी है -
                                                              यह तो एक महिला कि कहानी है ऐसे ना जाने कितनी ही महिला है जो दुसरे के किये कि सजा भुगत रही है ,मौन रहकर कुंठा के साथ ,लेकिन जब व्यथित मन ,समाज से बहिस्कृत होने का डर ,लोक लाज से अन्दर ही अन्दर घुटती ऐसे किसी अबला पर भी दिलफेंक मनचले अपनी वासना पूर्ति चाहेंगे तो बदले में कोई इन्हें मौत कि सौगात दे तो क्या बुरा है ,हालांकि यह अच्छा है या बुरा यह समाजशास्त्रीयो के लिए शोध का विषय हो सकता है-

Aug 3, 2010

चोरी और सीनाजोरी ,ये हैं झारखण्ड के विधायक


आईबीएन7 और कोबरा पोस्ट द्वारा राज्यसभा चुनाव में वोट देने के लिए पैसे पर बिकने वाले विधायकों को स्टिंग ऑपरेशन में दिखाए जाने के बाद राजनीतिक दलों ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कार्रवाई की बात कही है। वहीं चुनाव आयोग की आज फुल बेंच इस मसले पर बैठक करने जा रही है। आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा कि वो इस मामले को संसद में उठाएंगे। जेबीएम ने इस स्टिंग ऑपरेशन में नाम आने पर अपने विधायक चंद्रिका महतो को शो काउज नोटिस जारी किया है।
इस स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया गया है कि कैसे कांग्रेस, बीजेपी और जेएमएम के विधायक पार्टी व्हिप दरकिनार कर पैसे के लिए अपना वोट बेचने को तैयार हो गए। झारखंड में इन विधायकों के खिलाफ मोर्चाबंदी शुरू हो गई है। रांची के फिरायेलाल चौक पर झारखण्ड जनाधिकार मंच ने कांग्रेस, बीजेपी और जेएमएम विधायकों के भ्रष्ट और देशद्रोही आचरण पर विरोध किया और इनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
वहीं पैसे के लिए अपना वोट बेचने के आरोपों से घिरे कांग्रेस के योगेन्द्र साहू अब स्टिंग दिखाने के बाद सफाई देते हुए इसे साजिश बताया। उन्होंने कहा कि मैंने कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को ही वोट दिया। साहू ने कहा कि मैंने अपने लीडर को ही अपना वोट दिया है। साहू ने कहा कि सबसे बड़ी चीज़ ये है कि यह पैसा किसने दिया, कहां से आया। इसका प्रमाण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम इसके खिलाफ एक्शन लेने जा रहे हैं। विधायक लोग बैठ कर इसपर बात करेंगे और फैसला लेंगे। साहू ने कहा कि अगर यह सब ठीक है तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा। जनता हर बात को समझती है। साहू ने कहा कि उन्हें अब ग्लानी हो रही है और इसकी जांच सीबीआई से कराने की मांग की।
दूसरी ओर झारखंड कांग्रेस के प्रभारी केशव राव ने अपने विधायक के बचाव में कहा कि इस संबंध में विधायक के खिलाफ कोई पुष्ट सबूत नहीं हैं हालांकि उन्होंने इस संबंध में कड़ी कार्रवाई की बात कहते हुए कहा कि स्टिंग में विधायक को देखकर शर्मिंदगी महसूस हो रही है। उन्होंने कहा कि झारखंड में सेकंड प्रिफरेंस वोट का सवाल ही नहीं है। कांग्रेस के 28 वोट थे और सभी कांग्रेस को मिले।

आत्महत्या कि नगरी हजारीबाग

हजारीबाग कि कहानी निराली है प्रकृति ने खूब नेमते बरसाई ,जंगल झाड ,नदी ,झरने, झील  और अच्छी  आबो हवा लेकिन ना जाने किसकी नज़र लग गयी ,लोग बात बात पर अपनी जान लेने लगे ,सल्फास कि गोलियां ,फासी के फंदे ,कुँए में लाश रोज अखबारों कि सुर्खियाँ बनने लगे ,मरने वालो कि उम्र का औसत १६ से ३० ,रोजाना 6 से ७  लोग यहाँ आत्महत्या का प्रयास करते हैं जिनमे औसतन ४ से ५ लोगो कि मौत हो जाती है  
                                                                                                                                         यहाँ सबसे ज्यादा मौत सल्फास कि गोली खाने से होती है , चुकी पूरा क्षेत्र किसानबाहूल है और लोग किटनाशक के रूप में सल्फास कि गोली का प्रयोग करते हैं यही वजह है कि घरो में सल्फास कि गोलिया आसानी से मिल जाती है और लोग इसे खाकर अपनी जान दे देते हैं ,चौकाने वाले तथ्य यह है कि इस सल्फास पर सरकार एक दशक पहले ही प्रतिबन्ध लगा चुकी है लेकिन हजारीबाग ही नहीं पुरे राज्य में ये बीज बेचने वालो के पास आसानी से मिल जाता है -
                                                                                                                                                          इस साल  हजारीबाग में आत्महत्या के प्रयास और मरने वालो के आंकड़े को अगर देखे तो यह हैरान करती है जनवरी माह में ६५ लोगो ने आत्महत्या का प्रयास किया जिसमे 2६ पुरुष और ३५ महिलायों कि जान गयी इसी तरह फ़रवरी में ६० लोग कि मौत  हुई,मार्च में 66 लोग ने जान दी ,अप्रैल में ५५ ,जून में ७२ और जुलाई में अब तक ६५ लोग जान दे चुके हैं ,चौकिये नहीं ये आंकड़े केवल सदर अस्पताल और हजारीबाग के आस पास के अस्पतालों से लिए गए हैं जो मामले प्रकाश में आये हैं ,कितनी खबरे तो पहुचती ही नहीं -

हजारीबाग का यह इचाक प्रखंड है यह कभी रामगढ राजा कि राजधानी हुआ करती थी , छोटे से गाँव में १०१ मंदिर १०१ तालाब और १०१ बगीचे होने के कारण लोग इसे छोटी अयोध्या  भी कहते थे,आज जिले में होनी वाली आत्महत्या  कि सबसे ज्यादा घटना इसी प्रखंड में होती है हमने इसके कारण जान्ने का प्रयास किया -
                                                                                                                                         अगर हम यहाँ के सामाजिक कारणों को जानने  का प्रयास किया कि क्यों यहाँ महिलाये या लड़कियां आत्महत्या  करती हैं,जो तथ्य निकल कर आये वो चौकौने वाले हैं ,समाज में अनैतिक संबंधो या उन संबंधो के उजागर हो जाने से जो प्रताड़ना मिलती है सबसे ज्यादा आत्महत्या के कारणों में वही रहता है इचाक जैसे प्रखंडो में जागरूकता फ़ैलाने कि ज़रूरत है और समाज के सभी वर्गों से इस ओर कदम उठाने कि ज़रूरत है कि क्यों इचाक आज आत्महत्या कि नगरी बनती जा रही है स्त्रियों कि इज्ज़त और उनका सम्मान करने से ही कोई समाज आगे बढ़ता है -



Jul 22, 2010

आपनी फी जुटाने के लिए खेतो में काम




हजारीबाग से तक़रीबन २५ किलोमीटर कि दुरी पर सिमरिया मार्ग पर एक गाँव है हडियो यहाँ एक  स्कूल है संत जोसेफ स्कूल ,१ से १०वी तक पढाई होती है कुल दर्जनभर शिक्षक है ४५० बच्चे इस स्कूल में अध्ययनरत हैं ,स्कूल आवासीय है और १५० बच्चे इसमें रहते हैं ,साधारण दर्जे कि फी ४० रूपये है ,लेकिन आवासीय छात्रों को २५००  रूपये सालाना के देने होते हैं ,आज के महंगाई के ज़माने में ये काफी कम है लिहाज़ा इसकी भरपाई के लिए प्रबंधन ने इस उपाय सोचा ,स्कूल के पास दस एकड़ ज़मीन है ,स्कूल प्रबंधन ने इसमें खेती करने कि सोची और इसमें मजदूरी कराया गया बच्चो से ताकि जो बच्चे गरीब है और फी देने में असमर्थ हैं उनसे फी निकली जाये बच्चे स्कूल में तो काम करते ही हैं आस पास के गाँव में भी खेतो में धान रोपने भेज दिया जाता है ताकि पैसे मिल सके ,बच्चे आस पास के गाँव से आते हैं पूरा इलाका नक्सली है ,गरीब अभिभावक के पास कोई चारा नहीं है अगर चतरा या हजारीबाग बच्चो को भेजते हैं तो काफी खर्च आएगा जो उठाना इनके लिए काफी मुस्किल है लिहाज़ा वो बच्चो को यहाँ भेजते हैं ,फिर भी कई बार अभिभावक बच्चो को यहाँ से ले जाते हैं -
                                                                                        यहाँ पढ़ रहे बच्चो ने भी इसे अपनी नियति मान लिया है और सादे लहजे में कहते हैं कि उनकी गरीबी इनके पढने में बाधा ना बने इसी कारण आपनी फी जुटाने के लिए वो खेतो में काम करते हैं ताकि होस्टल में दो जून कि रोटी खा सके ,हाँ दलील यह भी दी जाती है कि इससे हम अपने परम्परागत काम खेती को भी सीख सकेंगे जो बाद में हमें करना ही है
सरकार अरबो रूपये बेहतर शिक्षा के लिए खर्च कर रही है वही दूसरी तरफ हडियो का स्कूल ऐसा भी उदाहरण है जहाँ बच्चे मजदूरी कर अपनी फी चुकाते हैं ,इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं या तो इन क्षेत्रो में सरकारी स्कूल सही तरीके से चल नहीं रहे हो या वहां के शिक्षण का स्तर अच्छा नहीं हो जिसके कारण लोग अपने बच्चो को यहाँ पढने के लिए भेजते हो ,दोनों ही कारणों में सोचने कि दरकार यहाँ के शिक्षा के अधिकारियो को है क्यों तमाम कोशिशो के बावजूद सर्व शिक्षा अभियान आम लोगो में ज़गह नहीं बना पा रहा है -

Apr 16, 2010

Durdasha ek Birhor bachhe ki ( दुर्दशा एक बिरहोर बच्चे कि )



       हजारीबाग के कटकमसांडी पर्खंड का संजय बिरहोर अपनी ख़राब मानसिक स्थति के कारन पिछले २ माह से जंजीरों में कैद है,गरीबी के कारन इसके परिजन इसका इलाज करा पाने में असमर्थ है ,झारखण्ड में बिरहोर जनजाति संरक्षित जनजातियो में सुमार है ,कल्याण विभाग से हर साल करोडो रूपये कि राशी इनके विकाश के लिए आवंटित कि जाती है इस राशी का उपयोग इनके बेहतर स्वास्थय सुविधा ,आवाश ,शिक्षा ,रोजगार आदि मुलभुत सुविधायो के लिए करनी होती है , लेकिन धरातल पर यह कितना कारगर है इसका अंदाज़ा इस बच्चे कि स्थति से स्वतः लगाया जा सकता है ,इसके परिजनों ने दर्ज़नो बार प्रखंड और जिला मुख्यालयों का चक्कर लगा कर देख लिया लेकिन कही सुनवाई नहीं होती है,खुद पर्खंड विकाश पदाधिकारी डॉक्टर कि भूमिका निभाते हुए कहते हैं तुम्हारे बेटे को कुछ नहीं हुआ है यह ऐसे ही ठीक हो जायेगा , थक हार कर इनका लाल कहीं भाग  ना जाये इस ख्याल से इसके कोमल पैरो में बेड़ियाँ डाल दी गयी हैं ,                                                                                                                                                                                           सरकार हर दिन कहती है कि नक्सलियों के पैर पसारने का एक कारन गाँव में विकाश का नहीं होना है ,विकाश के जवाबदेही निचले स्तर पर पर्खंड विकाश पदाधिकारी कि होती है ,अगर वो अपने काम से ऐसे विमुख रहेंगे तो विकाश तो होने से रहा अलबत्ता नक्सली  भोले भाले जनता को विकाश नहीं होने के नाम पर बरगलाते रहेंगे ,और उन्हें अपनी ओर आकर्षित भी करेंगे जो अब तक होता भी रहा है

Mar 16, 2010

Green hunt in Jharkhand (video ke liye yahan click kare...)

                                                 हजारीबाग और बोकारो जिले के शीमावर्ती इलाको में नक्सल विरोधी अभियान की सुरुआत कर दी गयी है इसमें रास्ट्रीय स्तर पर नक्सल विरोधी अभियान के लिए पुरस्कृत हो चुकी सी आर पी एफ  की २२ बटालियन के साथ स्थानीय पुलिस को कमान दी गयी है लम्बे सर्च ऑपरेशन किये जा रहे हैं और नक्सल प्रभावित गाँव में जाकर लोगो से मुख्य धारा में लौटने की अपील की जा रही है ,उन सरे रास्तो को सील किया जा रहा है जहाँ से नक्सलियों को भोजन और हथियार की सप्लाई की जाती है ,खास कर सारंडा -पारसनाथ और झुमरा पहाड़ जिसे रेड कोरिडोर कहा जाता है इन  क्षेत्र पर दवाब बढाया  जा रहा है यहाँ नक्सलियों की खासी गतिविधिया चलती रहती हैं इसी रस्ते से नक्सलियों का संपर्क समीपवर्ती राज्यों के साथ साथ नेपाल और बंगलादेश देश से तार  जुड़ने की बाते कही जाती हैं.
                                                    नक्सलियों को खदेड़ने में झारखण्ड में वैसी कंपनियों को लगाया गया है जिनका नक्सल विरोधी कार्यकर्मो में लम्बा अनुभव रहा है ,हजारीबाग के २२ बटालियन को नक्सल विरोधी अभियान के लिए इसे रास्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया जा चूका है ,इस अभियान के तहत जो क्षेत्र नक्सल प्रभावित हैं वहां बेस केम्प लगाने की तैयारी चल रही है ,पहले चरण में जिन गाँव में नक्सलियों ने प्रचार माध्यम से गाँव वालो को आकर्षित किया है उन्हें पुनः भरोसे में लिया जाना है ताकि वो नक्सल परभावित विचारधारा से हट कर मुख्यधारा में लौट सके.- 
                                    सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन तेज़ कर दिया है और इसका असर भी देखने को मिल रहा है लेकिन इन ऑपरेशन के साथ साथ ज़रूरी है वैसे कार्यक्रम चलाने की जिससे नक्सल परभावित क्षेत्रो का विकास भी साथ साथ हो ताकि उन्हें ये लगे की ये ऑपरेशन उनके भले के लिए किया जा रहा है
दिन भर एल आर पी में साथ रहने के बाद और कई गाँव जो पूरी तरह नक्सल परभावित हैं में घूम कर देखने के बाद जाना की क्यों लोग नक्सल की ओर आकर्षित हो रहे हैं जिस गाँव में पिछले एक दसक से कोई अधिकारी ना गया हो ,कोई विकास का काम ना हुआ हो कोई सरकारी योजना का लाभ ना मिला हो ,जहाँ पिने के पानी ,बिजली , सड़क ना हो रोज़गार के लिए बाहर जाना पड़ता हो वहां के लोग क्यों नहीं नक्सली बनेंगे ,ऐ सी में बैठे अधिकारियो को जबतक इन गाँव की करुण रुदन के स्वर कान में नहीं पहुचेंगे और विकाश के काम ऐसे गाँव तक नहीं होंगे तबतक गोलियों और बमों के धमाके होते रहेंगे -

Feb 19, 2010

Zahar ka paudh

 "हजारीबाग"  यूँ तो शाब्दिक अर्थ में हज़ार बागो के शहर को कहते हैं ,कभी यहाँ के जंगल को देख कर ही इसका नामांकरण किया गया था लेकिन समय बदला और अब चंद सिक्को की खातिर इसे हज़ार अफीम के बाग़ बनाने की कवायद चल रही है .जिले  के सुदूर नक्सल परभावित क्षेत्रों में नक्सली भोले भाले ग्रामीणों को बहला कर पोस्ते की खेती करवा रहे हैं इससे हुए कमाई का इस्तेमाल नक्सली अपनी शक्ति बढ़ाने में कर रहे हैं ,पुलिस की जब दबिस होती है तो बेचारे ग्रामीण फस जाते हैं ग्रामीणों की हालत  सांप छुछुंदर जैसी हो गयी है अगर खेती करने से मना करते हैं तो नक्सली मारते  हैं और करो तो पुलिस पकडती है .जहाँ पोस्ते की खेती होती है अगर लगातार दो साल तक वहां इसकी खेती की जाती रहती है तो वो खेत बंज़र हो जाते हैं ,सरकार इस ओर अभी ध्यान नहीं दे रही है लेकिन हकीकत यह है की स्थति बहुत भयावह हो गयी है और ये केवल हजारीबाग नहीं झारखण्ड के अधिकांश जिले में इसकी खेती चोरीछुपे जारी है .देश को कमज़ोर बनाने की दिशा में ये एक खतरनाक कदम है क्युकी एक ओर नशे में डूब कर युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है दूसरा इसे बेच कर नक्सली इस पैसे का इस्तेमाल अपनी शक्ति बढ़ाने में कर रहे हैं ..

Feb 9, 2010

PREET KE GULAB



  हजारीबाग से  ३०  Km की दूरी  par  Badkagaon parkhand ka  Baadam gaon kabhi Karnpura Rajya ki rajdhani hua karti thi ,jise baad me Ramgarh raj ke naam se jana jane laga,Bundelkhand se aaye दो bhaiyo Bhaghdeo aur Singhdeo ne Karnpura rajya ki sthapana ki thi  jiski rajdhani baad me Baadam hui isi raj ke raja Ram singh ke putra Raja Dalel Singh 1677 me gaddi par virajman hue.Raja ke yuddh me mare jane ki jhuthi khabar ek nai ke dwara diye jane par inki dono raniyon ne rajmahal ke samne ke kup me dubkar jaan de di .yuddh se lautne ke baad jab raja ne rani ke dubne ki baat jani to khud bhi usi kup me dub kar aatmhatya kar li,isi kup ke paas raja aur raniyo ne milkar ek gulab ka paudha lagaya tha bataya jata hai ki us samay ism ek hi rang ke gulaab lagte the lekin jab raja rani ki maut is kup me hui to isme do rang ke gulab ek hi paudhe se khilne lage .is dukhad ghatna ke baad is raj ki rajdhani yahan se Ramgarh chali gayi.samay bittta chala gaya aura as paas ke logon ne is bagiche ke  aas paas  khet khalihan bana liye isi darmyan  gulaab ke paudhe se badi jhadi ban chuke  is paudhe ko kaat kar hatane ki kosis hui ,kahte hain ki gaon me mahamari fail gayi aur kayi logon ko ye swapn aaya ki is gulab ke paudhe ko na cheda jai gaon walon ne uske baad ise phir kabhi nahi cheda ,aur log ye maan baithe ki aaj bhi isme raja rani ki aatma niwas karti hai.iske phool ki sundarta aur mahak se mohit ho kai logon ne ise apne gharon me lagane ki koshis ki par lakh paryas ke baad bhi ye lag nahi paya.ab rajmahal ke bhagnawases aur gulab ki jhadi kup ke paas bache hain aur ek amar कहानी तीन सौ साल से अधिक हो जाने के बाद भी ये गुलाब का पौधा अमर प्रेम की निशानी है /