हजारीबाग के कटकमसांडी पर्खंड का संजय बिरहोर अपनी ख़राब मानसिक स्थति के कारन पिछले २ माह से जंजीरों में कैद है,गरीबी के कारन इसके परिजन इसका इलाज करा पाने में असमर्थ है ,झारखण्ड में बिरहोर जनजाति संरक्षित जनजातियो में सुमार है ,कल्याण विभाग से हर साल करोडो रूपये कि राशी इनके विकाश के लिए आवंटित कि जाती है इस राशी का उपयोग इनके बेहतर स्वास्थय सुविधा ,आवाश ,शिक्षा ,रोजगार आदि मुलभुत सुविधायो के लिए करनी होती है , लेकिन धरातल पर यह कितना कारगर है इसका अंदाज़ा इस बच्चे कि स्थति से स्वतः लगाया जा सकता है ,इसके परिजनों ने दर्ज़नो बार प्रखंड और जिला मुख्यालयों का चक्कर लगा कर देख लिया लेकिन कही सुनवाई नहीं होती है,खुद पर्खंड विकाश पदाधिकारी डॉक्टर कि भूमिका निभाते हुए कहते हैं तुम्हारे बेटे को कुछ नहीं हुआ है यह ऐसे ही ठीक हो जायेगा , थक हार कर इनका लाल कहीं भाग ना जाये इस ख्याल से इसके कोमल पैरो में बेड़ियाँ डाल दी गयी हैं , सरकार हर दिन कहती है कि नक्सलियों के पैर पसारने का एक कारन गाँव में विकाश का नहीं होना है ,विकाश के जवाबदेही निचले स्तर पर पर्खंड विकाश पदाधिकारी कि होती है ,अगर वो अपने काम से ऐसे विमुख रहेंगे तो विकाश तो होने से रहा अलबत्ता नक्सली भोले भाले जनता को विकाश नहीं होने के नाम पर बरगलाते रहेंगे ,और उन्हें अपनी ओर आकर्षित भी करेंगे जो अब तक होता भी रहा है
अच्छा लगेगा मुझे बताकर प्यारा लगे शायद आप को जानकार ...
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Apr 16, 2010
Durdasha ek Birhor bachhe ki ( दुर्दशा एक बिरहोर बच्चे कि )
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