अच्छा लगेगा मुझे बताकर प्यारा लगे शायद आप को जानकार ...



Mar 16, 2010

Green hunt in Jharkhand (video ke liye yahan click kare...)

                                                 हजारीबाग और बोकारो जिले के शीमावर्ती इलाको में नक्सल विरोधी अभियान की सुरुआत कर दी गयी है इसमें रास्ट्रीय स्तर पर नक्सल विरोधी अभियान के लिए पुरस्कृत हो चुकी सी आर पी एफ  की २२ बटालियन के साथ स्थानीय पुलिस को कमान दी गयी है लम्बे सर्च ऑपरेशन किये जा रहे हैं और नक्सल प्रभावित गाँव में जाकर लोगो से मुख्य धारा में लौटने की अपील की जा रही है ,उन सरे रास्तो को सील किया जा रहा है जहाँ से नक्सलियों को भोजन और हथियार की सप्लाई की जाती है ,खास कर सारंडा -पारसनाथ और झुमरा पहाड़ जिसे रेड कोरिडोर कहा जाता है इन  क्षेत्र पर दवाब बढाया  जा रहा है यहाँ नक्सलियों की खासी गतिविधिया चलती रहती हैं इसी रस्ते से नक्सलियों का संपर्क समीपवर्ती राज्यों के साथ साथ नेपाल और बंगलादेश देश से तार  जुड़ने की बाते कही जाती हैं.
                                                    नक्सलियों को खदेड़ने में झारखण्ड में वैसी कंपनियों को लगाया गया है जिनका नक्सल विरोधी कार्यकर्मो में लम्बा अनुभव रहा है ,हजारीबाग के २२ बटालियन को नक्सल विरोधी अभियान के लिए इसे रास्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया जा चूका है ,इस अभियान के तहत जो क्षेत्र नक्सल प्रभावित हैं वहां बेस केम्प लगाने की तैयारी चल रही है ,पहले चरण में जिन गाँव में नक्सलियों ने प्रचार माध्यम से गाँव वालो को आकर्षित किया है उन्हें पुनः भरोसे में लिया जाना है ताकि वो नक्सल परभावित विचारधारा से हट कर मुख्यधारा में लौट सके.- 
                                    सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन तेज़ कर दिया है और इसका असर भी देखने को मिल रहा है लेकिन इन ऑपरेशन के साथ साथ ज़रूरी है वैसे कार्यक्रम चलाने की जिससे नक्सल परभावित क्षेत्रो का विकास भी साथ साथ हो ताकि उन्हें ये लगे की ये ऑपरेशन उनके भले के लिए किया जा रहा है
दिन भर एल आर पी में साथ रहने के बाद और कई गाँव जो पूरी तरह नक्सल परभावित हैं में घूम कर देखने के बाद जाना की क्यों लोग नक्सल की ओर आकर्षित हो रहे हैं जिस गाँव में पिछले एक दसक से कोई अधिकारी ना गया हो ,कोई विकास का काम ना हुआ हो कोई सरकारी योजना का लाभ ना मिला हो ,जहाँ पिने के पानी ,बिजली , सड़क ना हो रोज़गार के लिए बाहर जाना पड़ता हो वहां के लोग क्यों नहीं नक्सली बनेंगे ,ऐ सी में बैठे अधिकारियो को जबतक इन गाँव की करुण रुदन के स्वर कान में नहीं पहुचेंगे और विकाश के काम ऐसे गाँव तक नहीं होंगे तबतक गोलियों और बमों के धमाके होते रहेंगे -