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"हजारीबाग" यूँ तो शाब्दिक अर्थ में हज़ार बागो के शहर को कहते हैं ,कभी यहाँ के जंगल को देख कर ही इसका नामांकरण किया गया था लेकिन समय बदला और अब चंद सिक्को की खातिर इसे हज़ार अफीम के बाग़ बनाने की कवायद चल रही है .जिले के सुदूर नक्सल परभावित क्षेत्रों में नक्सली भोले भाले ग्रामीणों को बहला कर पोस्ते की खेती करवा रहे हैं इससे हुए कमाई का इस्तेमाल नक्सली अपनी शक्ति बढ़ाने में कर रहे हैं ,पुलिस की जब दबिस होती है तो बेचारे ग्रामीण फस जाते हैं ग्रामीणों की हालत सांप छुछुंदर जैसी हो गयी है अगर खेती करने से मना करते हैं तो नक्सली मारते हैं और करो तो पुलिस पकडती है .जहाँ पोस्ते की खेती होती है अगर लगातार दो साल तक वहां इसकी खेती की जाती रहती है तो वो खेत बंज़र हो जाते हैं ,सरकार इस ओर अभी ध्यान नहीं दे रही है लेकिन हकीकत यह है की स्थति बहुत भयावह हो गयी है और ये केवल हजारीबाग नहीं झारखण्ड के अधिकांश जिले में इसकी खेती चोरीछुपे जारी है .देश को कमज़ोर बनाने की दिशा में ये एक खतरनाक कदम है क्युकी एक ओर नशे में डूब कर युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है दूसरा इसे बेच कर नक्सली इस पैसे का इस्तेमाल अपनी शक्ति बढ़ाने में कर रहे हैं ..