हजारीबाग से तक़रीबन २५ किलोमीटर कि दुरी पर सिमरिया मार्ग पर एक गाँव है हडियो यहाँ एक स्कूल है संत जोसेफ स्कूल ,१ से १०वी तक पढाई होती है कुल दर्जनभर शिक्षक है ४५० बच्चे इस स्कूल में अध्ययनरत हैं ,स्कूल आवासीय है और १५० बच्चे इसमें रहते हैं ,साधारण दर्जे कि फी ४० रूपये है ,लेकिन आवासीय छात्रों को २५०० रूपये सालाना के देने होते हैं ,आज के महंगाई के ज़माने में ये काफी कम है लिहाज़ा इसकी भरपाई के लिए प्रबंधन ने इस उपाय सोचा ,स्कूल के पास दस एकड़ ज़मीन है ,स्कूल प्रबंधन ने इसमें खेती करने कि सोची और इसमें मजदूरी कराया गया बच्चो से ताकि जो बच्चे गरीब है और फी देने में असमर्थ हैं उनसे फी निकली जाये बच्चे स्कूल में तो काम करते ही हैं आस पास के गाँव में भी खेतो में धान रोपने भेज दिया जाता है ताकि पैसे मिल सके ,बच्चे आस पास के गाँव से आते हैं पूरा इलाका नक्सली है ,गरीब अभिभावक के पास कोई चारा नहीं है अगर चतरा या हजारीबाग बच्चो को भेजते हैं तो काफी खर्च आएगा जो उठाना इनके लिए काफी मुस्किल है लिहाज़ा वो बच्चो को यहाँ भेजते हैं ,फिर भी कई बार अभिभावक बच्चो को यहाँ से ले जाते हैं -
यहाँ पढ़ रहे बच्चो ने भी इसे अपनी नियति मान लिया है और सादे लहजे में कहते हैं कि उनकी गरीबी इनके पढने में बाधा ना बने इसी कारण आपनी फी जुटाने के लिए वो खेतो में काम करते हैं ताकि होस्टल में दो जून कि रोटी खा सके ,हाँ दलील यह भी दी जाती है कि इससे हम अपने परम्परागत काम खेती को भी सीख सकेंगे जो बाद में हमें करना ही है
सरकार अरबो रूपये बेहतर शिक्षा के लिए खर्च कर रही है वही दूसरी तरफ हडियो का स्कूल ऐसा भी उदाहरण है जहाँ बच्चे मजदूरी कर अपनी फी चुकाते हैं ,इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं या तो इन क्षेत्रो में सरकारी स्कूल सही तरीके से चल नहीं रहे हो या वहां के शिक्षण का स्तर अच्छा नहीं हो जिसके कारण लोग अपने बच्चो को यहाँ पढने के लिए भेजते हो ,दोनों ही कारणों में सोचने कि दरकार यहाँ के शिक्षा के अधिकारियो को है क्यों तमाम कोशिशो के बावजूद सर्व शिक्षा अभियान आम लोगो में ज़गह नहीं बना पा रहा है -